Sunday, 9 April 2017

कैसे बनें सकारात्मक

कैसे बनें सकारात्मककैसे बनें सकारात्मक

जब भी हम “पॉजिटिव” या “सकारात्मक” शब्द के बारे में सोचते हैं तो हममें से अधिकांश के मन में शायद “हैपी” या “प्रसन्न” शब्द का ध्यान आता है। तथापि, प्रसन्नता ही एकमात्र सकारात्मकता नहीं है। जीवन में सकारात्मक होने के बहुत से तरीके हैं और यह तब भी हो सकता है जब आप दुख, क्रोध या कठिनाइयों का सामना कर रहे हों।[१]शोध बताते हैं कि हमारे अंदर सकारात्मक भावनाओं और सोचने के तरीके को "चुनने" की प्रबल योग्यता होती है।[२]वास्तव में, हमारी भावनाएं हमारे शरीर में कोशिकीय स्तर (cellular level) पर परिवर्तन लाती हैं।[३]जीवन में हमारे बहुत से अनुभव इस बात का परिणाम होते हैं कि हमारे इर्द-गिर्द जो कुछ भी है हम उसका विश्लेषण किस तरह से करते हैं और उस पर हमारी प्रतिक्रिया क्या होती है। सौभाग्यवश, नकारात्मक भावनाओं का दमन करने या उससे छुटकारा पाने का प्रयास करने के बजाय हम उनका एक अलग ढंग से भी विश्लेषण कर सकते हैं और उनके प्रति अपनी प्रतिक्रिया भी अलग ढंग देने का चयन कर सकते हैं।[४] आप पाएंगे कि थोड़े से अभ्यास, धैर्य और दृढ़ता से आप और अधिक सकारात्मक बन सकते हैं।

3की विधि 1:
स्वयं से शुरुआत करें

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    आप जैसे भी हैं उसे स्वीकार करें: यदि आप समस्या की पहचान नहीं कर सकते हैं (या नहीं करेंगे) तो आप अपने सोचने के तरीके में भी परिवर्तन नहीं ला सकते हैं। यदि आप इस बात को स्वीकार कर लें कि आपकी सोच और भावनाएं नकारात्मक हैं और उनके प्रति आपकी वर्तमान प्रतिक्रिया से आप आनंदित नहीं होते हैं तो आप परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू करने में स्वयं की मदद कर सकते हैं।[५]
    • अपनी सोच और भावनाओं के आधार पर अपने बारे में कोई निष्कर्ष निकालने का प्रयास न करें: स्मरण रखें, जो भी विचार आपके मन में आते हैं या जो भी भावनाएं आप अनुभव करते हैं वे स्वयं में “अच्छे” या “बुरे” नहीं होते हैं, वे मात्र विचार और भावनाएं होती हैं। इस मामले में जो चीज आप नियंत्रित कर “सकते” हैं वह है आप द्वारा उनके विश्लेषण का तरीका और उस पर आपके द्वारा होने वाली प्रतिक्रिया।
    • अपने बारे में जिस चीज को आप भी परिवर्तित नहीं कर सकते हैं, उसे स्वीकार करें। उदाहरण के लिए, यदि आप एक अंतर्मुखी व्यक्ति हैं जिसे “री-चार्ज” होने के लिए कुछ समय एकांत में बिताने की आवश्यकता होती है तो ऐसे में यदि आप हमेशा अपने को बहिर्मुखी दर्शाने का प्रयास करेंगे तो उसके परिणाम स्वरूप संभवतः आप निचुड़े हुए और अप्रसन्न महसूस करने लगेंगे। आप इस समय जो भी हैं और जैसे भी हैं उसे स्वीकार करें। ऐसा करने से आप अपने अंदर के वर्तमान व्यक्ति को एक अत्यंत सकारात्मक व्यक्ति (जो की आप बन सकते हैं) में बदलने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र महसूस करने लगेंगे।
जब भी हम “पॉजिटिव” या “सकारात्मक” शब्द के बारे में सोचते हैं तो हममें से अधिकांश के मन में शायद “हैपी” या “प्रसन्न” शब्द का ध्यान आता है। तथापि, प्रसन्नता ही एकमात्र सकारात्मकता नहीं है। जीवन में सकारात्मक होने के बहुत से तरीके हैं और यह तब भी हो सकता है जब आप दुख, क्रोध या कठिनाइयों का सामना कर रहे हों।[१]शोध बताते हैं कि हमारे अंदर सकारात्मक भावनाओं और सोचने के तरीके को "चुनने" की प्रबल योग्यता होती है।[२]वास्तव में, हमारी भावनाएं हमारे शरीर में कोशिकीय स्तर (cellular level) पर परिवर्तन लाती हैं।[३]जीवन में हमारे बहुत से अनुभव इस बात का परिणाम होते हैं कि हमारे इर्द-गिर्द जो कुछ भी है हम उसका विश्लेषण किस तरह से करते हैं और उस पर हमारी प्रतिक्रिया क्या होती है। सौभाग्यवश, नकारात्मक भावनाओं का दमन करने या उससे छुटकारा पाने का प्रयास करने के बजाय हम उनका एक अलग ढंग से भी विश्लेषण कर सकते हैं और उनके प्रति अपनी प्रतिक्रिया भी अलग ढंग देने का चयन कर सकते हैं।[४] आप पाएंगे कि थोड़े से अभ्यास, धैर्य और दृढ़ता से आप और अधिक सकारात्मक बन सकते हैं।

3की विधि 1:
स्वयं से शुरुआत करें

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    आप जैसे भी हैं उसे स्वीकार करें: यदि आप समस्या की पहचान नहीं कर सकते हैं (या नहीं करेंगे) तो आप अपने सोचने के तरीके में भी परिवर्तन नहीं ला सकते हैं। यदि आप इस बात को स्वीकार कर लें कि आपकी सोच और भावनाएं नकारात्मक हैं और उनके प्रति आपकी वर्तमान प्रतिक्रिया से आप आनंदित नहीं होते हैं तो आप परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू करने में स्वयं की मदद कर सकते हैं।[५]
    • अपनी सोच और भावनाओं के आधार पर अपने बारे में कोई निष्कर्ष निकालने का प्रयास न करें: स्मरण रखें, जो भी विचार आपके मन में आते हैं या जो भी भावनाएं आप अनुभव करते हैं वे स्वयं में “अच्छे” या “बुरे” नहीं होते हैं, वे मात्र विचार और भावनाएं होती हैं। इस मामले में जो चीज आप नियंत्रित कर “सकते” हैं वह है आप द्वारा उनके विश्लेषण का तरीका और उस पर आपके द्वारा होने वाली प्रतिक्रिया।
    • अपने बारे में जिस चीज को आप भी परिवर्तित नहीं कर सकते हैं, उसे स्वीकार करें। उदाहरण के लिए, यदि आप एक अंतर्मुखी व्यक्ति हैं जिसे “री-चार्ज” होने के लिए कुछ समय एकांत में बिताने की आवश्यकता होती है तो ऐसे में यदि आप हमेशा अपने को बहिर्मुखी दर्शाने का प्रयास करेंगे तो उसके परिणाम स्वरूप संभवतः आप निचुड़े हुए और अप्रसन्न महसूस करने लगेंगे। आप इस समय जो भी हैं और जैसे भी हैं उसे स्वीकार करें। ऐसा करने से आप अपने अंदर के वर्तमान व्यक्ति को एक अत्यंत सकारात्मक व्यक्ति (जो की आप बन सकते हैं) में बदलने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र महसूस करने लगेंगे।
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      लक्ष्य निर्धारित करें: लक्ष्य, हमें जीवन के प्रति और ज्यादा सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। शोध ऐसा दर्शाते हैं कि भले ही आप लक्ष्य को तुरंत प्राप्त न कर पाएँ परंतु उसके निर्धारण मात्र से आप तुरंत ही अधिक आश्वस्त और आशान्वित महसूस कर सकते हैं।[६] यदि लक्ष्यों को इस तरह से निर्धारित किया जाये कि वे आपके स्वयं के लिए अर्थपूर्ण हों और आपके जीवन-मूल्यों की दिशा में हों तो, उन्हें प्राप्त करने में और अपने जीवन में आगे बढ़ने में आपको सहायता मिलेगी।[७]
      • छोटे लक्ष्यों से शुरू करें। तुरंत ही चाँद पाने का लक्ष्य न बनाएँ। यह सर्व विदित है कि धीमी और नियमित गति से दौड़ जीती जा सकती है। शुरू करने के लिए अपने लक्ष्य को विशिष्ट बनाएँ। “अधिक सकारात्मक बनें” जैसा लक्ष्य एक महान लक्ष्य तो हो सकता है परंतु यह इतना विशाल है कि आप शायद यही न समझ पाएँ कि शुरुआत कहाँ से करें। इसलिए बेहतर होगा कि छोटे और विशिष्ट लक्ष्य निर्धारित करें जैसे कि “सप्ताह में दो बार मेडिटेशन करना” या “दिन में एक बार किसी अजनबी पर हंसना”।[८]
      • अपने लक्ष्यों को सकारात्मक शब्दों में व्यक्त करें। शोध दर्शाते हैं कि यदि आप अपने लक्ष्यों को सकारात्मक अभिव्यक्ति करें तो उन्हें आप द्वारा प्राप्त किए जाने की संभावना ज्यादा हो जाएगी। दूसरे शब्दों में, अपने लक्ष्यों का निर्धारण उसी दिशा में करें “जिस दिशा में आप प्रयासरत हैं” न कि “जिस दिशा से आप परहेज कर रहे हैं”। उदाहरण के लिए “जंक फूड खाना बंद करना” एक ऐसा लक्ष्य है जिससे आपको कोई भी मदद नहीं मिल सकती हैं। ऐसे लक्ष्यों के प्राप्ति में विफलता आपमें शर्म का या अपराध बोध उत्पन्न कर सकता है। “प्रतिदिन फलों और सब्जियों की तीन सर्विंग्स खाना है” एक विशिष्ट और सकारात्मक लक्ष्य है।[९]
      • अपने स्वयं की कार्यवाही के आधार पर अपना लक्ष्य निरधारित करें। स्मरण रखें कि दूसरों के द्वारा किए जाने वाले कार्यों पर आप नियंत्रण नहीं कर सकते हैं। यदि आप ऐसा लक्ष्य निर्धारित करेंगे जिसको प्राप्त करने में अन्य व्यक्तियों द्वारा एक निश्चित प्रतिक्रिया की आवश्यकता पड़ती होगी तो उनके द्वारा कार्य को आपकी आशा के अनुकूल न किए जाने पर आपको अत्यंत बुरा लगेगा। इसलिए बेहतर होगा यदि आप लक्ष्य को अपने बल-बूते पर या अपने द्वारा नियंत्रित किए जा सकने वाले कार्यों जो कि आपका अपना निष्पादन हो, के आधार पर निर्धारित करें।[१०]

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